Saturday, August 30, 2008




माँ तेरी चरणों में सत् सत् प्रणाम ,

तेरी गोद में सर रख मैं मिट जाती हुँ ,

यह तेरी ही कृपा है माँ की

इस कंठ से प्रभु की अंतरिम धवनी निकलती है,

यह कंठ परमपिता की बासुरी बन चूका है

अब तो उसके ही स्वर यहाँ से गुण गुण कर हवा में घुल रहे है ,

ऐसा लगता है जैसे तुम ही इस कंठ पर बैठ कर परमपिता के सुर गाती हो

और मेरे मध्यम से पूरी दुनिया इस से अभिभूत होती रहती है .

हे माँ तेरे दर्शन से मैं तृप्त हुई ।

तुझे सत् सत् प्रणाम


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