शारीर को परमात्मा ने माध्यम बनाया मुक्ति का ,पर इंसान ने उसे माध्यम बना लिया बंधन का . प्राथना सच्ची हो ...प्रेम ह्रदय से फुट फुट कर आसू ओ और तड़प के रूप में ह्रदय से निकल कर परमात्मा की और बह रहा हो ......तो ऐसे मट्टी के धेले को बहने से कोई रोक नहीं सकता .एक भक्त का रोम रोम केवल परम पिता से मिलने को तड़पता हैं ...जीवन को जीते हुए भी वह जीवन से परे रहता हैं . जीवन के हर भाव , हर कर्म ,हर परिस्तिथि उसके लिए केवल एक माध्यम होता हैं स्वं से मिलने का ...भक्त अपने जीवन में कोई भी कार्य कर रहा हो......भीतर उसके हाथ सदा ही प्राथना में जुड़े रहते हैं ...कोई पल ही नहीं होता जब वह प्राथना में न हो . फिर चाहे वह दफ्तर में हो ,या हल चला रहा हो ,कपडे धो रहा हो ..भीतर सदैव ही प्राथना चलती रहती हैं l
जब जब मै हनुमान जी की छवि देखती हु , तो मुझे ऐसा एहसास होता हैं जैसे में स्वं को ही देख रही हू . आखिर ऐसा क्यों ?
हनुमान जी एक भक्त की छवि को प्रतिनिधित्वा करते हैं , जैसे उनका रोम रोम राम नाम की सुगध से भरा हुआ हैं ,
उसी तरह एक सच्चे प्रेमी का रोम रोम ..साँस सांस प्रभु से आकर प्रभु में ही मिट जाता हैं ....
भक्त की सांसो में कोई आक्सीजन नहीं बहता ..कोई प्राण वायु नहीं बहती ..उसकी सांसो में केवल परमपिता का नाम बहता हैं .....
प्रेम ही उसकी सांसे हैं ,
प्रेम ही उसकी जाती ,
प्रेम ही उसका रूप हैं ,प्रेम ही संगती
प्रेम ही परमगति
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