Friday, June 1, 2012

_()_ हरी ॐ

मै  अनीता हु .जब होश संभाला तो होश ही नहीं था . जीवन की घटनायो ने मुझे दुनिया को समझने से पहले परमात्मा को समझने और ढूढ़ ने की राह दी .नत मस्तक हु ऐसे परमपिता के सामने जिसने इतनी बड़ी कृपा मुझ पर की . हर पल में ,हर सांस में एक धुनी जलती थी ..की प्रभु मुझे तुम थाम लो ..मेरी मदद करो .
सौभाग्य  से सतगुरु ओशो मिले . जिन्होंने सदियों से बंद मेरे भीतर  के दरवाज़े को खोल दिया .एक अँधेरे कुवे  से रौशनी की अनंत सागर में मुझे डुबो दिया .
 मै एक माटी की मूरत थी , जिसे पता भी नहीं था की उसके भीतर कोई लौ जल रही हैं .
आज भी मै एक साधरण इन्सान हु ..जो जीवन को अति साधारण आँखों से देख रही हैं जी रही हैं ...
अब यह पता लग चूका हैं की मै एक अनंत सागर हु ..और उस से निकल कर जीवन के घाट तक बहने वाली लहर भी .....
अब जीवन से कोई बैर नहीं ..कोई मित्रता भी नहीं ....बस साथ साथ चल रही हु 
सतगुरु से प्राथना करती हु की जीवन से आती हुई हर सीख को अपने भीतर ले अपने आत्मा को और आलोकित कर सकू .
सत गुरु तुमको प्रणाम 
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2 comments:

HariOm Tiwari said...

This is very first time I saw a true confession from the very core of the heart.
I love the confession !
Thank you for showing a daring attitude !
HariOm Tiwari

Unknown said...

thnk you Hariomji apka saath mujhe hamesha hi aseem anand se bhar deta hain .gratitude _()_