मन क्या हैं ? मन वह उपकरण हैं जिस में ब्रह्म्हांड से भावो का प्रवेश होता हैं .मन में जब किसी भाव का प्रवेश होता हैं तो वह मन के साथ साथ चित ,बुद्धि ,मानस और अहम् कार को भी प्रभावित करता हैं .जो उसके प्रभाव से अनछुवा रहता हैं वह हैं चेतना .चेतना का रूप अनंत हैं वह निर्विकार हैं .चेतना यानि परमचेतना .पञ्च तत्वा से निर्मित शरीर को चालित करना वाला कोई और नहीं परमचेतना हैं .यह परम चेतना जो हर शरीर को चालित करता हैं . पञ्च तत्वा से बना शरीर कई चीजों से प्रभावित होता हैं .परन्तु चेतना किसे से भी प्रभावित नहीं होती .वह अपने परम शुद्ध रूप में सदा ही स्थित रहती हैं .
मन में जब किसी भी भाव का आगमन होता हैं तो वह हमारे चित को प्रभावित करता हैं .हमारे बुद्धि को प्रभावित करता हैं ,हमारे अहम् को प्रभावित करता हैं .फिर हमारा पूरा शरीर ही उसके पकड़ में आ जाता हैं .अहंकार+.मन+ बुद्धि एक दुसरे से सम्बंधित हैं .भाव का मन में प्रवेश होते ही बुद्धि उसकी जाच करने लगती हैं की वह उसकी संचित अवधारणा से मेल खाती हैं या नहीं .अगर मेल खाती हैं तो हमारे अहम् को संतुष्टि मिलती हैं और मन प्रसन होता हैं .अगर वह भाव बुद्धि की संचित ज्ञान या अवधारणा से मेल नहीं खाती तो हमें दुःख होता हैं .शरीर में तनाव उत्पन्न होता हैं .
मान लीजिये की आप अपने मित्र के लिए एक खुबसूरत सा तोफा ले कार जाते हैं .अब मन में पहले से ही अवधारणा बनी हुई हैं की आपका मित्र तोफे को देख कर प्रसन्न होगा .आपको धन्यवाद देगा .तोफे की प्रशंसा करेगा .परन्तु ऐसा कुछ नहीं होता .आपका मित्र तोफा लेकर उसे एक कोने में रख देता हैं .अब आप अपने मन का खेल देखो .तुरंत ही बुद्धि उसे सूचित करेगी की यह उसने सही नहीं किया हैं .उसे तो तारीफ करनी थी .मित्र को तो मुझे धन्यवाद देना था .यह तरीका सही नहीं . अब आपका अहम् उस से जुड़ जायेगा और आपके अहम् को तुरंत ही चोट पहुचेगी .अहम् को चोट पहुची क्युकी मन की पूर्व अवधारणा से मित्र का व्यवहार मेल नहीं खा रहा .अगर मित्र का व्यवहार मन की अवधारणा से मेल खाता .वह आपकी खूब प्रशंसा करता तो मन में ख़ुशी के भाव प्रकट होते . इसी तरह मन हर भाव के साथ सुख और दुःख के झूले में झूलता हैं . एक ही भाव से सुख का भी अनुभव होता हैं और दुःख का भी .
दुःख का झुला,सुख का झुला - प्रमिला का पति काम के सिलसिले में परदेश जा रहा था .दोनों की नयी नयी शादी हुई थी .प्रमिला ने पति से वादा लिया की वह उसे हर दिन सुबह शाम फोन करेगा .विदेश जा कर उसका पति उसे रोज़ सुबह शाम फोन करता . धीरे धीरे पति व्यस्त होता गया .फोन न करने की अवधि बढती गयी .अब दिन में केवल एक बार ही प्रमिला को उसका फोन आता . .प्रमिला के मन को चोट पहुची की पति ने तो वादा किया था की सुबह शाम बात करेगा .लेकिन अब तो दिन में केवल एक ही बार फोन कर रहा हैं .प्रमिला दुखी रहने लगी .फिर फोन २ या ३ दिनों में एक बार आने लगा ..बार बार उसे बुद्धि समझाने लगी की तेरा पति तुझसे अब प्यार नहीं करता .इस लिए ही तुझे फोन नहीं करता . दुःख बढता गया .फिर भाव आने लगे जरुर कोई दूसरी स्त्री पर मर मिटा होगा .कही उसने उस से शादी कर ली तो .प्रमिला दुःख के झूले पर झूलने लगी थी .कही वह मुझे छोड़ तो नहीं देगा . मैंने तो उस से इतना प्यार किया पर वह मुझ से धोखा कर रहा हैं . दुःख का झुला तेज़ होता जा रहा था .मेरा क्या होगा ? अगर वह कभी वापिस नहीं आया तो ? झुला दिन प्रतिदिन तेज़ होता गया .दुःख बढ़ता गया . एक दिन अचानक दरवाज़े पर घंटी बजी प्रमिला ने दरवाज़ा खोला तो सामने एक व्यक्ति लिफाफा लिए खड़ा था .उस व्यक्ति ने कहा मैडम आपका २० लाख का लाटरी निकला हैं .सहसा प्रमिला के चेहरे पर ख़ुशी छलकने लगी .वह दुःख के झूले से उतर सुख के झूले पर बैठ गयी थी. कुछ ही दिन में नयी गाड़ी ले ली .ख़ुशी और बढ़ गयी .पड़ोसियों को जलता देख ख़ुशी बढ़ने लगी .नए गहने लिए ,कपडे ख़रीदे ख़ुशी का झुला और तेज़ हुआ . एक रात चोर आया और सारे गहने,सामान और गाड़ी चुरा ले गया .अब प्रमिला फिर से दुःख के झूले पर थी .
मन की यही गति हैं .कभी दुःख कभी सुख के झूले से वह उतरता ही नहीं ....
No comments:
Post a Comment