Saturday, September 8, 2012

भोगो ऐसे जैसे बैरागी हो ,बैरगो ऐसे जैसे भोगी हो

कोई भी भाव या क्रिया गलत नहीं तुम उसे कैसे करते हो ,कैसे भोगते हो यह महत्वपूर्ण हैं। वासना को अगर मांस की तरह भोगते हो तो वह तुम्हे जानवर बनाएगी .वासना को अगर  इश्वर के प्रसाद के सामान भोगते हो तो तुम्हे उस में परमात्मा  की सुगंध मिलेगी .
वासना को अगर मांस की तरह भोगोगे तो केवल भक्षक बन के रह जाओगे .हमेशा एक अतृप्ति बनी रहेगी .बार बार भोगने की लालसा बनी रहेगी .भोगते हुए भी अतृप्ति रहेगी .जैसे जैसे भोगोगे वैसे वैसे एक माहिर भक्षक बनते जाओगे .धीरे धीरे तुम एक राक्षस  के सामान हो जाते हो जिसकी भूख  कभी नहीं मिटती .वह हमेशा ताक  में रहने लगता हैं की कैसे मौका मिले और मै अपनी तृष्णा को शांत करू .वह तृष्णा और तृप्ति की ऐसी जाल  में फसता  हैं की उसका निकलना मुश्किल होने लगता हैं .
अगर किसी भी वासना को प्रसाद की तरह भोगते हो तो तुम्हारा मन निर्मल रहता हैं .क्रिया को करते समय या किसी भी भाव को जीते समय तुम पूरी तरह साक्षी रहने की कोशिश करते हो .वासना के प्रति तुम्हारा रवैया नकारात्मक या घृणित नहीं रहता .बल्कि तुम प्रेमपूर्वक उसका स्वागत करते हो .उसे प्रभु का एक अनमोल तोफा समझ  कर उसे जीते हुए जानने की कोशिश करते हो .उस में पूरी तन्मयता के साथ डुबकी  लगाते  हो और धीरे धीरे उस से विरक्त हो जाते हो .भोगो ऐसे जैसे बैरागी हो ,बैरगो ऐसे जैसे भोगी हो .
इस प्रकार जीवन को श्रधा पूर्वक जीते हुए ,उसे समझते हुए तुम भव सागर से पार होने लगते हो . तुम्हारे भीतर प्रेम और ज्ञान का दीपक अनुभव के तेल से जलने लगता हैं .तुम जीवन को धन्यवाद देते हो ,भाई बंधुयो ,मित्रो ,सद्गुरुयो को नमस्कार करते हो की उन्होंने इस जीवन को प्रेम पूर्ण जीने में तुम्हारी सहायता की और अंत समय राग और द्वेष  से मुक्त  परमानन्द में शरीर का त्याग करते हो .
अपने जीवन के अभियंता तुम स्वाम हो .इस जीवन का इस्तमाल तुम कैसे करोगे यह तुम पर निर्भर हैं .या तो इसे भोगते हुए ,जीते हुए इसे स्वीकार करते हुए ,समझते हुए  दिव्या  आलोक से भरते जाओ या फिर इसे अस्वीकार करते हुए ,लड़ते हुए ,फसे रहो .यह तुम्हारा चुनाव हैं .

_()_ हरिओम 

2 comments:

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Anonymous said...

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