ज़िन्दगी की धारा में पाँव डाले बैठी हुँ।और उसे बहते देेख रही हु। मै यहाँ क्यों हु ? मैं क्या कर रही हु इस धरती पर प्रभु ?मै तो यहाँ की हु भी नहीं फिर भी यहाँ होते हुए दिख रही हु। क्या मैं जीवित हु या मृत हुँ ? मैं तो न मर सकती हु न जी सकती हु। यह दोनों भाव मेरे लिए तो अब कोई भाव नहीं रखते।कुछ बेचैनी सी हैं मेरा अब यहाँ (धरती पर )मन नहीं लगता .
हर आत्मा परमात्मा से मिलने को व्याकुल हैं। उस परमधाम को अव्यक्त तथा अविनाशी कहा जाता हैं और वही परम तीर्थ परम गन्तव्य हैं। जब कोई वह जाता तो कभी वापिस नहीं लौटता। उस परम लोक के रास्ते में वैकुण्ठ धाम पड़ता हैं। यह लोक श्रीहरि विष्णु का निवास स्थल हैं। श्री हरी विष्णु कि कृपा के बिना कोई भी आत्मा केवल अपने प्रयास से अपने पूर्ण ब्रह्म स्वरुप को नहीं देख सकती। श्रीहरि विष्णु देवाये नमः। समस्त ब्रह्महान्डiये नमः। ……………
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