जिसे परमात्मा से प्रेम हो जाता हैं, उसे फिर किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम करना असंभव हो जाता हैं । वह सब के भीतर बसे परमात्मा से प्रेम करता हैं। किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम करने के लिए खुद भी व्यक्ति होना या परम सत से पृथक होना आवश्यक हैं। जो परम सत्य के साथ पूर्णतः एकीकर हो जाता हैं उसका सत (आत्मा) परमात्मा के साथ एक हो जाता हैं। वह सारे जगत से प्रेम करता हैं क्युकी कण कण में उसे केवल ब्रह्म दिखता हैं। शरीर अनेको हो सकते हैं पर सब की आत्मा एक हैं। जिसने उस एक को समझ लिया ...उसका हो गया , वह सब का हो गया।
SPIRITUAL BLISS COMES FROM THE ULTIMATE FLOWERING OF A EXISTENTIAL BEINGNESS INTO SUPREME TRUTH . IT IS A SHARING OF EXPERIENCES BEYOND QUANTUM LEAP .
Tuesday, August 19, 2014
जिसे परमात्मा से प्रेम हो जाता हैं, उसे फिर किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम करना असंभव हो जाता हैं । वह सब के भीतर बसे परमात्मा से प्रेम करता हैं। किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम करने के लिए खुद भी व्यक्ति होना या परम सत से पृथक होना आवश्यक हैं। जो परम सत्य के साथ पूर्णतः एकीकर हो जाता हैं उसका सत (आत्मा) परमात्मा के साथ एक हो जाता हैं। वह सारे जगत से प्रेम करता हैं क्युकी कण कण में उसे केवल ब्रह्म दिखता हैं। शरीर अनेको हो सकते हैं पर सब की आत्मा एक हैं। जिसने उस एक को समझ लिया ...उसका हो गया , वह सब का हो गया।
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