SPIRITUAL BLISS COMES FROM THE ULTIMATE FLOWERING OF A EXISTENTIAL BEINGNESS INTO SUPREME TRUTH . IT IS A SHARING OF EXPERIENCES BEYOND QUANTUM LEAP .
Thursday, March 19, 2015
Wednesday, March 18, 2015
Tuesday, March 17, 2015
Monday, March 16, 2015
ध्यान क्या है? - Dhyan Kya Hai?
ध्यान क्या है? - Dhyan Kya Hai?
जिन-सूत्र – Jin Sutra, Vol.3
महावीर
ने तो कहा कि मूल धर्म है--ध्यान। जिसने ध्यान साध लिया, सब साध लिया। तो
हम समझें, यह ध्यान क्या है? पहली बात, अंतर्यात्रा है। दृष्टि को भीतर ले
जाना है। बाहर भागती ऊर्जा को घर बुलाना है। जैसे सांझ पक्षी लौट आता है,
नीड़ पर, ऐसे अपने नीड़ में वापस, वापस आ जाने का प्रयोग है ध्यान। जब सुविधा
मिले, तब समेट लेना अपनी सारी ऊर्जा को संसार से--घड़ी भर को सही--सुबह,
रात, जब सुविधा मिल जाए तब बंद कर लेना अपने को। थोड़ी देर को भूल जाना
संसार को। समझ ना कि नहीं है। समझना कि स्वप्नवत है। अपने को अलग कर लेना।
अपने को ता़ेड़ लेना बाहर से। और अपने भीतर देखने की चेष्टा करना--कौन हूं
मैं? मैं कौन हूं? ओशो सहज होने का अर्थ क्या है ?
प्रश्न - सहज होने का अर्थ क्या है ?
उत्तर - जो सारी अवधारणा मुक्त है वही सहज है। सहज होने का अर्थ यह नहीं की जो आपके मन में आये आप वही करने लगे। अपने भीतर की कुन्ठा या फ़्रस्टेशन को निकालने को सहज होना नहीं कहते। बल्कि जब गहरे ध्यान बाद आप निर्मल अवस्था में आते है उसे सहज होना कहते है। सहज होने के नाम पर कई लोग जोर जोर से बोलतें है , दुसरो को नीचे दिखा कर खुद की स्वभंजन करते है ,उटपटांग हरकतें करते है और इसी को सहज होना समझते है । अगर किसी चोर से कहो की चोरी मत करो तो वह भी कहेगा की मैं तो सहज हु। सहजता अपने हिसाब से नहीं होती .जो आपके लिए सहज है वह दूसरे लिए सहज नहीं होगी तो वह सच्ची सहजता नहीं है। एक आदमी शराब पी कर रोज़ अपनी बीवी बच्चों को मारता था उन्हें गालियाँ देता था और कहता था की मैं तो सहज हुँ। एकदिन उस की बीवी और बच्चों ने मिलकर उस की पिटाई कर दी और कहा हम तो सहज हैं। लोग अपने मन मुताबिक सद्गुरुओं की बातों का अर्थ निकाल लेते है। यह अर्थ नहीं अनर्थ होता है. सहज होने का अर्थ निर्मल होना हैं ,प्रेमपूर्ण होना हैं। हर अवधारणा से मुक्त होना है। जो व्यक्ति स्वं में स्थापित है और जीवन को सहज स्वीकार करे वही सहज है।
सहज गौतम बुद्ध थे ,महावीर थे ,मीरा थी ,ओशो थे ,रमन महर्षि थे। खुद को जाचना हो तो इनको देखो और गुरु के समक्ष खड़े होकर ह्रदय पर हाथ रख कर पूछो स्वं से " क्या मैं सहज हुँ ? या मैं सहज होने का नाटक कर रहा हुँ ? अगर सच्चे हो तो तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें उत्तर देगी। हरिओम _()_
उत्तर - जो सारी अवधारणा मुक्त है वही सहज है। सहज होने का अर्थ यह नहीं की जो आपके मन में आये आप वही करने लगे। अपने भीतर की कुन्ठा या फ़्रस्टेशन को निकालने को सहज होना नहीं कहते। बल्कि जब गहरे ध्यान बाद आप निर्मल अवस्था में आते है उसे सहज होना कहते है। सहज होने के नाम पर कई लोग जोर जोर से बोलतें है , दुसरो को नीचे दिखा कर खुद की स्वभंजन करते है ,उटपटांग हरकतें करते है और इसी को सहज होना समझते है । अगर किसी चोर से कहो की चोरी मत करो तो वह भी कहेगा की मैं तो सहज हु। सहजता अपने हिसाब से नहीं होती .जो आपके लिए सहज है वह दूसरे लिए सहज नहीं होगी तो वह सच्ची सहजता नहीं है। एक आदमी शराब पी कर रोज़ अपनी बीवी बच्चों को मारता था उन्हें गालियाँ देता था और कहता था की मैं तो सहज हुँ। एकदिन उस की बीवी और बच्चों ने मिलकर उस की पिटाई कर दी और कहा हम तो सहज हैं। लोग अपने मन मुताबिक सद्गुरुओं की बातों का अर्थ निकाल लेते है। यह अर्थ नहीं अनर्थ होता है. सहज होने का अर्थ निर्मल होना हैं ,प्रेमपूर्ण होना हैं। हर अवधारणा से मुक्त होना है। जो व्यक्ति स्वं में स्थापित है और जीवन को सहज स्वीकार करे वही सहज है।
सहज गौतम बुद्ध थे ,महावीर थे ,मीरा थी ,ओशो थे ,रमन महर्षि थे। खुद को जाचना हो तो इनको देखो और गुरु के समक्ष खड़े होकर ह्रदय पर हाथ रख कर पूछो स्वं से " क्या मैं सहज हुँ ? या मैं सहज होने का नाटक कर रहा हुँ ? अगर सच्चे हो तो तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें उत्तर देगी। हरिओम _()_
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