Friday, October 31, 2008

आँसुओ से श्रधांजलि















सामने बैठे रहो और



हम तुम्हे देखते रहे .


























भीतर के दीये की महिमा

एक दिन एक बच्चे ने पुछा "गहरे अंधेरे में मै कैसे आगे बढुँ ? "


और स्वतः ही जवाब उभर कर आया


भीतर के दीये के सहारे ,


अपने भीतर के दीये के


रूबरू हो जाओ ,(तुम्हारा गुरु तुम्हारे भीतर छिपा है )


जैसे जैसे आगे बढ़ते जाओगे


दुँढने वाला गिरता जाएगा


दीये का प्रकाश बढ़ता जाएगा


केवल प्रकाश ही रह जाएगा


और


यही प्रकाश तुम हो


सिर्फ़


प्रकाश


हो ..

Friday, October 24, 2008


जैसे सूरजमुखी का फूल सूर्य की किरणों के पड़ते ही खिल उठता है ,

उसकी प्रकार प्रेमी भी परमात्मा के आशीर्वाद के मिलते ही खिलने लगते है ।

उनका पूरा व्यक्तित्व परमात्मा की तरफ़ खुल जाता है ,

वे भी फूल की भाती ही उधर ही घूमने लगते है जिधर परमब्रह्म की तरंगे उसे

घुमाती जाती है ।

प्रेमी चाहे परमपिता के हो या किसे व्यक्ति के
प्रेमी के गुण वही होने लगते है

जो प्रियेतम के है .