जैसे सूरजमुखी का फूल सूर्य की किरणों के पड़ते ही खिल उठता है ,
उसकी प्रकार प्रेमी भी परमात्मा के आशीर्वाद के मिलते ही खिलने लगते है ।
उनका पूरा व्यक्तित्व परमात्मा की तरफ़ खुल जाता है ,
वे भी फूल की भाती ही उधर ही घूमने लगते है जिधर परमब्रह्म की तरंगे उसे
घुमाती जाती है ।
प्रेमी चाहे परमपिता के हो या किसे व्यक्ति के
प्रेमी के गुण वही होने लगते है
जो प्रियेतम के है .
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