प्रश्न- उतर -
माँ क्या इश्वर होते हैं ? क्या सच में वह हमें दिखाई देते हैं?
अनीता - मानव पञ्च तत्वा से बना एक सीमित रूप हैं .जिसके अन्दर परम ब्रह्म का निवास हैं . जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है । मन के आइने में तब ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है. वैसे तो ईश्वर रूपहीन है निराकार हैं परन्तु जब तक साधक की उर्जा त्रिनेत्र तक नहीं पहुच जाती और त्रिनेत्र विकसित नहीं हो जाता तब तक परमब्रह्म , छवि के रूप में हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत होता है . यह माया के प्रभाव से होता हैं .माया के प्रभाव से मुनुष्य यह सोचता हैं की वह ब्रह्म से पृथक हैं .इस लिए उसे ब्रह्म से मिलना हैं . जब तक खुद के व्यक्तिगत होने का भाव हैं , तब तक परमात्मा के व्यक्तिगत होने का भी भाव रहता हैं .मन के भीतर ब्रह्म का वास हैं तो मन के पार परमब्रह्म का . सारी कहानी त्रिनेत्र पर आकर ख़तम हो जाती हैं .यहाँ एक दिव्या प्रकाश होता हैं जिस में सारे भम्र जल जाते हैं .माया का जाल यहाँ पूर्ण रूप से गिर जाता हैं .अब आकाश साफ़ हैं .कोई द्वैत नहीं .कोई मै नहीं कोई तू नहीं ..केवल सम्पूर्णता ...सतत निरंतर ..निराकार ....
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