एक दिन एक ओशो सन्यासी मुल्ला नसरुदीन से मिला .दोनों में दोस्ती हो गयी . आनंद उत्सव नाम का यह ओशो सन्यासी पेशे से वकील था . एक दिन आनंद उत्सव मुल्ला से मिलने उसके घर चला गया . मुल्ला ने बैठने को चारपाई लगाई . आनंद उत्सव बड़े रोब से धीरे धीरे चलते हुए आकर चारपाई पर बैठा .उसने मुल्ला के बारे में काफी सुन रखा था .मन में भाव था कि आज तो मुल्ला को बता ही देना हैं की मै कितना बड़ा ज्ञानी हु .
चारपाई पर बैठते ही उसने अपने कमीज़ को ठीक किया, थोडा गला साफ़ किया . लम्बी सांस ली . चेहरे पर सौम्यता की परत चढ़ाई . अपनी तैयारी से सन्तुष्ट हो कर आनंद उत्सव ने शुरू किया " ओशो कहते हैं ...
ओशो सन्यासियों के परम ज्ञानी और ध्यानी होने के ऐसे नाटक से मुल्ला नसरुदीन कई दिनों खिजा हुआ था ,.चिढ कर उसने कहा "मै ओशो को जानता ही नहीं ,तुम अपनी बात कहो ."
गुरु का ऐसा अपमान , आनंद उत्सव तमक उठा .गुस्से की लहर उठ गयी .भीतर ही भीतर विचार आया, मेरा ऐसा अपमान .
गुस्से और चिढ को दबा कर उसने फिर शुरू किया " ओशो कहते हैं .........
मुल्ला ने भी सोच लिया था की आज तो रटे ज्ञान की परत नोच ही देने हैं .मुल्ला ने फिर कहा " मै ओशो को नहीं जानता आप अपनी बात बताओ . आपके भीतर जो ध्यान से बदलाव आया वह बताओ "
आनंद उत्सव बड़ी तैयारी से आया था .कितने ही सालो से ओशो की किताबो से उसने कुछ सुंदर पक्तिय कंठस्त की थी .विचार तो यह था की आज मुल्ला को उसकी औकात बता ही देनी हैं . अपने ओशो ज्ञान का ऐसा परिचय देना हैं की मुल्ला की बोलती ही बंद हो जाए .
पर हाय रे किस्मत ...मुल्ला के ऐसे रवैये से सारे किये कराए पर पानी फिरता नज़र आया . चेहरे की सौम्यता मिटने लगी ..गुस्से से बोले आप मेरी निजी निजता पर वार कर रहे हैं .मुझे बोलने ही नहीं दे रहे .मेरी उडान को रोक रहे हैं .मै जब जब उड़ने की कोशिश कर रहा हु आप रोक देते हैं . मेरी निजी निजता मेरे लिए बड़ी अहम् हैं .ओशो निजी निजता पर बहुत बोले हैं . मेरा खाना पीना सोना मेरी निजी निजता हैं .5 मिनट तक बिना सांस लिए आनंद उत्सव बोलते रहे .........
मुल्ला शांत था .उसे पता था की निजी निजता का गहरा अर्थ क्या था .
वह ओशो के गहरे प्रेम था .सद्गुरुयो और परमपिता के आशीर्वाद से उसे भीतर बसे राम के दर्शन हो चुके थे . ओशो के परम आशीष से, ध्यान के रास्ते .. प्रेम में डूबते हुए वह निर्विकार में लीन हो चूका था .
निजी निजता, वह परम शुन्य जहा स्वं भी मिट जाता हैं . ऐसी निजी ..जंहा और कोई नहीं रह जाता .स्वं में लीन हो कर केवल स्वं ही रह जाता हैं . .
मुल्ला गहरे ध्यान में डूब चूका था . रोम रोम आनंद रस से भर चूका था। भीतर गहरा मौन था ..........
आनंद उत्सव अब भी अपने निजी निजता का बखान कर रहे थे .......
_()_ हरिओम
चारपाई पर बैठते ही उसने अपने कमीज़ को ठीक किया, थोडा गला साफ़ किया . लम्बी सांस ली . चेहरे पर सौम्यता की परत चढ़ाई . अपनी तैयारी से सन्तुष्ट हो कर आनंद उत्सव ने शुरू किया " ओशो कहते हैं ...
ओशो सन्यासियों के परम ज्ञानी और ध्यानी होने के ऐसे नाटक से मुल्ला नसरुदीन कई दिनों खिजा हुआ था ,.चिढ कर उसने कहा "मै ओशो को जानता ही नहीं ,तुम अपनी बात कहो ."
गुरु का ऐसा अपमान , आनंद उत्सव तमक उठा .गुस्से की लहर उठ गयी .भीतर ही भीतर विचार आया, मेरा ऐसा अपमान .
गुस्से और चिढ को दबा कर उसने फिर शुरू किया " ओशो कहते हैं .........
मुल्ला ने भी सोच लिया था की आज तो रटे ज्ञान की परत नोच ही देने हैं .मुल्ला ने फिर कहा " मै ओशो को नहीं जानता आप अपनी बात बताओ . आपके भीतर जो ध्यान से बदलाव आया वह बताओ "
आनंद उत्सव बड़ी तैयारी से आया था .कितने ही सालो से ओशो की किताबो से उसने कुछ सुंदर पक्तिय कंठस्त की थी .विचार तो यह था की आज मुल्ला को उसकी औकात बता ही देनी हैं . अपने ओशो ज्ञान का ऐसा परिचय देना हैं की मुल्ला की बोलती ही बंद हो जाए .
पर हाय रे किस्मत ...मुल्ला के ऐसे रवैये से सारे किये कराए पर पानी फिरता नज़र आया . चेहरे की सौम्यता मिटने लगी ..गुस्से से बोले आप मेरी निजी निजता पर वार कर रहे हैं .मुझे बोलने ही नहीं दे रहे .मेरी उडान को रोक रहे हैं .मै जब जब उड़ने की कोशिश कर रहा हु आप रोक देते हैं . मेरी निजी निजता मेरे लिए बड़ी अहम् हैं .ओशो निजी निजता पर बहुत बोले हैं . मेरा खाना पीना सोना मेरी निजी निजता हैं .5 मिनट तक बिना सांस लिए आनंद उत्सव बोलते रहे .........
मुल्ला शांत था .उसे पता था की निजी निजता का गहरा अर्थ क्या था .
वह ओशो के गहरे प्रेम था .सद्गुरुयो और परमपिता के आशीर्वाद से उसे भीतर बसे राम के दर्शन हो चुके थे . ओशो के परम आशीष से, ध्यान के रास्ते .. प्रेम में डूबते हुए वह निर्विकार में लीन हो चूका था .
निजी निजता, वह परम शुन्य जहा स्वं भी मिट जाता हैं . ऐसी निजी ..जंहा और कोई नहीं रह जाता .स्वं में लीन हो कर केवल स्वं ही रह जाता हैं . .
मुल्ला गहरे ध्यान में डूब चूका था . रोम रोम आनंद रस से भर चूका था। भीतर गहरा मौन था ..........
आनंद उत्सव अब भी अपने निजी निजता का बखान कर रहे थे .......
_()_ हरिओम