Friday, July 27, 2012

मुल्ला नसरुदीन और आनंद उत्सव

 एक दिन एक ओशो सन्यासी मुल्ला नसरुदीन से मिला .दोनों में  दोस्ती हो गयी .   आनंद उत्सव नाम का यह ओशो सन्यासी पेशे से वकील था . एक दिन आनंद उत्सव  मुल्ला से मिलने  उसके घर चला गया . मुल्ला ने  बैठने को चारपाई लगाई   . आनंद  उत्सव बड़े रोब से धीरे धीरे चलते हुए आकर चारपाई पर बैठा .उसने मुल्ला के बारे में काफी सुन रखा था .मन  में भाव था कि  आज तो  मुल्ला को बता ही देना हैं की मै  कितना बड़ा ज्ञानी  हु .
चारपाई पर बैठते  ही उसने अपने कमीज़ को ठीक किया, थोडा गला  साफ़ किया . लम्बी सांस ली . चेहरे  पर  सौम्यता की परत चढ़ाई . अपनी तैयारी से सन्तुष्ट हो कर आनंद उत्सव ने शुरू किया " ओशो कहते हैं ...
ओशो सन्यासियों के परम ज्ञानी और ध्यानी होने के ऐसे  नाटक से  मुल्ला नसरुदीन  कई दिनों खिजा हुआ था ,.चिढ कर उसने कहा "मै  ओशो को जानता  ही नहीं ,तुम अपनी बात कहो ."
गुरु का ऐसा अपमान , आनंद उत्सव  तमक उठा .गुस्से की लहर उठ गयी .भीतर ही भीतर  विचार आया, मेरा ऐसा अपमान . 
गुस्से और चिढ को दबा कर  उसने फिर शुरू किया " ओशो कहते हैं .........
मुल्ला ने भी सोच लिया था की आज तो  रटे ज्ञान की परत नोच ही देने हैं .मुल्ला ने फिर  कहा " मै  ओशो को नहीं जानता आप अपनी बात बताओ . आपके भीतर जो  ध्यान से बदलाव आया वह  बताओ "
आनंद उत्सव बड़ी   तैयारी से आया था .कितने ही सालो से  ओशो की किताबो से उसने कुछ   सुंदर पक्तिय कंठस्त की थी .विचार तो  यह था की आज मुल्ला को उसकी औकात बता ही देनी हैं .  अपने ओशो ज्ञान का ऐसा परिचय देना हैं की मुल्ला की बोलती ही बंद हो जाए .
पर हाय रे किस्मत ...मुल्ला के ऐसे रवैये से सारे  किये कराए  पर पानी फिरता नज़र आया . चेहरे  की सौम्यता  मिटने लगी ..गुस्से से बोले आप मेरी निजी निजता पर वार कर रहे हैं .मुझे बोलने ही नहीं दे रहे .मेरी   उडान को रोक रहे हैं .मै  जब जब उड़ने की कोशिश कर रहा हु आप रोक देते हैं . मेरी निजी निजता मेरे लिए बड़ी अहम् हैं .ओशो निजी निजता पर बहुत  बोले हैं . मेरा खाना पीना सोना मेरी निजी निजता हैं .5 मिनट तक बिना सांस  लिए आनंद उत्सव बोलते रहे .........
मुल्ला शांत था .उसे पता था की निजी निजता का गहरा  अर्थ क्या था .
वह ओशो के गहरे प्रेम था .सद्गुरुयो और परमपिता के आशीर्वाद से उसे भीतर बसे राम के दर्शन हो चुके थे . ओशो के परम आशीष से, ध्यान के रास्ते .. प्रेम में डूबते हुए  वह निर्विकार में लीन हो चूका था .
 निजी निजता,  वह परम शुन्य जहा स्वं  भी मिट जाता हैं . ऐसी निजी ..जंहा  और कोई नहीं रह जाता  .स्वं  में लीन हो कर केवल स्वं ही रह जाता हैं .  .
 मुल्ला गहरे  ध्यान  में डूब चूका था . रोम रोम आनंद रस से भर चूका था। भीतर  गहरा मौन था ..........
आनंद उत्सव  अब भी  अपने निजी निजता का बखान कर रहे थे .......

_()_ हरिओम



Thursday, July 26, 2012

attachment = detachment .लगाव = अलगाव

 दिलीप -- कैसे कोई खुद को जीवन से अनासक्त करे ?


अनीता - 
   दिलीप तुमने कभी यह सोचा  की  इस दुनिया से लगाव कैसे हुआ ? 
पहले तो  यह देखना  होगा कि इस दुनिया से लगाव कैसे हुआ ? 
दिलीप तुम्हे संसार से लगाव कैसे हुआ यह प्रश्न अपने भीतर पूछ्ना .


शुन्य  का दरवाज़ा ,संसार के भीतर से ही खुलता हैं .  भीड़ से ही एक रास्ता परम एकाकीपन की तरफ खुलता हैं .जिसने भीड़ को पूरी प्रबलता से जीया  हैं वही उसे पूरी प्रबलता से छोड़ने की कला भी सीख लेता हैं .एक छोटा बच्चा अपने नए खिलोने को बड़े आश्चर्य से देखा हैं . उसे जानने , उसे जीने और उस से खेलने  की तीव्र इच्छा  उस में होती हैं .सारा दिन वह उस खिलोने को हाथ में लिए घूमता हैं .उस के दिमाग में केवल वह खिलौना रहता हैं .सोते, जागते वह केवल  उस खिलोने  में ही डूबा रहता हैं .फिर एक दिन वह उस खिलोने को फेक देता हैं और आगे चल देता हैं .उस का पूरा इंटेरेस्ट ही उस खिलोने से ख़तम हो जाता हैं .दुनिया भी यही हैं .इस दुनिया रूपी  खिलोने को जोर से पकड़ो .इस से खूब खेलो .पूरी तरह इसे समझ लो .इस के प्रति तुम्हारा लगाव, तुम्हारा attachment  ही तुम्हारे इस से अलगाव  de- tachment  कारण बनेगा .


जिस तरह तुम्हे लगाव का एहसास  हुआ उसी तरह तुम्हे अलगाव का भी एहसास   होगा .
दुनिया को जीते हुए ही तुम्हे दुनिया से विरक्ति होगी . यही मनुष्य की नियति हैं. जिसे  जियोगे ही नहीं उस से विरक्त कैसे होगे ? हमने बुद्ध की कहानी पढ़ी हैं ,महावीर की कहानी पढ़ी हैं .दोनों ही राजा थे .धन ,सम्पदा से युक्त .दोनों ने ही बचपन से ही राजस्वा को इस कदर जीया, की जवानी आते आते उस जीवन से उन्हें विरक्ति हो गयी . किसे भी चीज़ या भाव को जब हम पूर्णता से जीते हैं तो उस से हमें विरक्ति हो जाती हैं .
दुनिया तुमने जी ली और अब विरक्ति हो रही हैं तो जंगले की तरफ मत भागो .घर बार छोड़ कर कही पहाड़ पर मत भाग जाओ . बल्कि भीतर भागो .शरीर और मान से पार भीतर की शुन्यता  तरफ बढ़ो .
कई बार मैंने लोगो को कहते सुना हैं कि , मै पारिवारिक ज़िन्दगी छोड़ कर कुछ दिनों या महीनो के लिए पहाड़ पर या किसे आश्रम में एकांत में जा रहा हु . अरे कैसा एकांत ? ..यह एकांत भी तो संसार का ही हिस्सा हैं . तुम तो केवल जगह बदल रहे हो . बदलना हैं तो gestalt  बदलो   . शरीर हैं तो जीवन हैं .जब तक इस शरीर में जीवित हो , जीवन से तुम कही नहीं भाग सकते  .पर हाँ जीवन के सागर में ही डुबकी लगाकर तुम भीतर के शुन्य   से अमृतवा का मोती पा  सकते हो .जीवन को जीते हुए , तुम में जीवन  के प्रति एक गहरी समझ आयेगी .तुम्हे यह एहसास होगा की मै  केवल यह शरीर मात्र नहीं हु .मै  भीड़ का हिस्सा होते हुए भी नितान्त  अकेला हु . भीतर    कुछ  खीचने लगेगा . भीतर कुछ  बेचैनी का एहसास होगा .जीवन में सम्पूर्णता होने के बावजूद भी, भीतर एक खालीपन होगा .
यही तुम्हारी डोर होगी जो तुम्हे भीतर ले जाएगी .यही बेचैनी  तुम्हे ज़िन्दगी का सही अर्थ ढूढने पर मजबूर करेगी.
_()_ हरी ॐ 
.

Tuesday, July 24, 2012

Do you feel that happiness depends on detachment from the world ?

Happiness doesn't depend on attachment or detachment . Happiness is like a ever flowing river of joy which never dries whether it is flowing in total aloneness or it is flowing through a crowded city .Happiness is not temporary .Its a state , attained with deep understanding and meditation .For me I am happy in both ways whether I am attached or detached . I am living in this temporary world . I am attached to my kids ,my husband ,my other relatives, friends and I am very happy . At times I am totally detached from periphery and  I remain in center . I am happy . 
But there is a state where I remain 24/7 .That is neither attachment nor detachment . I am at peace ,deep joy .
You can be happy in both ways in attachment and in detachment only when you discover the Real happiness within. 
The happiness you feel in day to day life . which comes and pass , is temporary .Its not the joy arsing from you . Its out come of any desire which has been fulfilled on that particular moment . you can be happy in attachment when you are at peace with yourself  ,totally accepting life as it is .In deep harmony with existence .You can be happy in detachment if you are blissful within .But both attachment and detachment are two extreme modes on which people swing . If you are in love with existence , if you love your being ..you will neither be totally consumed by attachments not by detachments . You will  flow in the middle,  living life with deep understanding  and lightness .
_()_ hariom

Friday, July 20, 2012

अपनी हसी को धयान की विधि बना ले




जब भीतर आनंद की अनुभूति होती हैं तो उसकी अभिव्यक्ति हसने और रोने दोनों रूपों में होती हैं . स्त्रिया प्रेम में ,ध्यान में आनंद बरसने पर रोने लगती हैं
पुरुष मस्ती में खिलखिला उठते हैं .पुरुष अपनी इसी हसी को ध्यान की घटना बना सकते हैं और स्त्रिया अपने रोने को ध्यान की विधि बना सकती हैं .
जब भीतर आनंद की अनुभूति होने पर हसी उठे या रोना आये ,तो उसे रोकना मत . जी भर के रोना .. भीतर से खूब जोर की रुलाई उठेगी . उसे होने देना .खूब रोना ...तुम रुलाई को फुट फुट कर निकलने में सहायक रहना ...रोते रोते एक पल आयेगा जब रोना स्वं ही बंद हो जायेगा .भीतर गहरी शांति और विस्तार का अनुभव होगा .
धीरे धीरे प्यारी सी हसी फूटने लगेगी .एक अनोखे आनंद का भीतर एहसास होगा .
इसी तरह पुरुष अपनी हसी को ध्यान की विधि बना सकते हैं . हसी फूटने पर .हसी के सहायक हो जाए .उसे फूटने दे . हसी की तीव्रता बढ़ जाएगी . हसी ठहाको में बदलने लगेगी .खूब ठहाके फूटने दे . यह क्रिया १/२ घंटे ,१ घंटे या २ घंटे भी चल सकती हैं .इसे रोके मत ..होने दे ...फिर यह स्वं ही बंद हो जाएगी . गहरी शांति का ,भीतर विस्तार का अनुभव होगा .
एक सच्चा खोजी गहरे संकल्प से ,जीवन को अपनी प्रयोग शाला बना कर जीता हैं . वह जीवन की हर क्रिया को ही ध्यान की क्रिया बना लेता हैं .जब तक वह घर नहीं पहुच जाता ,स्वं को दूढ़ कर स्वं में लीन नहीं हो जाता ,उसे चैन नहीं मिलता .उसकी आत्मा एक प्यासे हिरन की तरह बेचैन रहती हैं .
_()_ हरी ॐ

How can you live moments of bliss

How can you live the moments of bliss?


The Moments of Bliss can be lived only when you are light hearted within.
When you are not unhappy with life, its circumstances & its results... When you see the world with the eyes of Wonder. When deep down you realize that all these moments, incidents and happenings of life is just a Play. When you realize that everything here is so momentary, continuously changing. Train your mind not to panic but to witness the drama of life as it is going. When you are watching a movie... do you go on the screen and try to change the scene of violence, pain, pleasure or romance as per your likes and dislikes? Any super duper hit movie consists of all emotions in right proportion, which is why we enjoy it. Dear, your life too is directed by the super hit director (God). So enjoy it. When you will start watching things as they are, slowly you will start enjoying it. Whatever will be the scene you will enjoy it.

Your wife has cheated you...you will enjoy it. Your son has failed in exams ... you will enjoy it. Your friends has taken your money...you will enjoy it. Your boss is shouting at you...you will enjoy it. A great laughter will be arising within you... your body mind will respond as per the situation but within you will feel like a King, sitting back on your chair, relaxing and enjoying the movie going. Once your gestalt changes towards life you will go...dive in deep peace... in deep serenity and will find yourself flying...feather light in the sky of bliss ... and unconditional love.


TIPS - Active Meditations help in throwing out your negativity and creates space for lord to enter in you.
Passive meditation connects you with lord. It enhances your Bhakti Bhav and love for the lord... it creates a connection between you and Supreme Lord.
Witnessing and contemplation helps you to penetrate deep within. It creates an awareness and realization of your real SELF.


Use these tips...break all barriers and fly in the sky of supreme bliss, love and freedom.

Wednesday, July 18, 2012

MY GURU AND ME ..WE WALK HAND IN HAND

It was 1987 march when I was married to Sw Abhaybharti . I was a teenager and was very childlike .This was the year when I came in contact with Osho . Whole of my in laws family was Osho sanyasin . Every day my father in law and other family members  did dynamic and other meditations . I used to watch them while  doing my house hold works . I didn't  like Osho  . .My mind was filled with all negative news about osho which used to get published in news papers at that time . Every wall of our house had Osho pictures in different poses and quotations .
While moving in the house I always saw him watching me and smiling at me . This happened every day . I was not pleased by this  .I went to him angrily and said .."don't watch me and don't smile at me ...I am not your disciple ..go and take care of your disciples."
There was a big poster of osho on the wall just above the stairs which led to my room .Every time passing from there I saw him smiling at me lovingly .I said to him " look I don"t have time to talk to you i am going to prepare lunch so better you don't smile at me ." In hindi angrily I said " din bhar mere peeche lage rahte hain ".means whole day he is after me .
In this way our talk began . For .few months I was in displeased mode but slowly we became friends .I started  sharing all emotions ,pain and pleasures with him. .
This became our every day routine . I very easily understood his non verbal replies to my sharing. Though I was not his disciple for me he was present every moment like other family members . I never felt   his  physical   absence .
while all these continued ....when ,I got totally soaked in his energy  I didn't realize .He started guiding me in my meditations . All my daily  house hold chores became the process of meditation ,witnessing and contemplation..All though all the works were happening by me on body level ,i was completely aloof from the periphery world . I was flying in sky in totally different world and energy .Time dimension changed . voluminous books were read by me in just an hour or so . I felt I was feather like .
It was a great mystery for me  for years that  why OSHO was helping me so much .
Many a times I asked him about it . My this question was answered by him in 2004 when I first time went to Pune .
rest later ......................................
hahahahaha ..experiencing tremendous joy and laughter rising from my navel chakra  sweetttttt smile
_()_ hari om 

मंदिर के दीये

.श्री रामजी का  मंदिर दीयो  से जगमगा रहा था . उस मंदिर की महिमा अपरंपार  थी .उसी मंदिर के  अँधेरे कोने  में हजारो बिन जले नए दीये रखे थे .  अँधेरे कोने में रखे दीये रोज़ ही प्रभु राम के चरणों में जले दीये को देखते और सोचते की वह  कितने सौभाग्य शाली हैं . वो  दीये खास हैं . उनके भीतर  जलती हुए लौ हैं...वह रौशनी से परिपूरण   इस  लिए वह  श्री राम  के चरणों में हैं .
हम में ऐसी बात नहीं .हम में जलने की योगता ही नहीं .रोज़ ही अपनी किस्मत पर रोते .पर उनमें  एक दीया था जिसकी नज़र  प्रभु के चरणों में जले दीपकों से हटती ही न थी .उसे पूर्ण विश्वास था की एक दिन वह श्री राम के चरणों में रखा जायेगा ....
एक दिन अचानक ही बिन जले दीयो के   बीच वह   दीया जल उठा .....
उस के लौ से पूरा कोना जगमगा उठा . सारे दीये अचंभित थे .उसकी रौशनी और
लावण्य से वशीभूत एक बिन जला   दीया धीरे धीरे उसकी और खिचता गया .दीपक से दीपक मिला और बुझे हुए दीपक में भी लौ जल उठी .  हजारो सालो से जो कल्पित भाव दीयो में था की उनमे जलने की योग्ता  ही  नहीं वह हिल चुकी थी .फिर क्या था दीप से दीप मिलते चले गए ....कोना कोना जगमगा उठा ........

तुम भी एक ऐसे ही दीये हो .मन में  कल्पित भाव की जलने वाले खास हैं उनमें  कोई खास बात थी जो मुझे में नहीं हैं .यही तुम्हारे व्यवधान  ,तुम्हारे लिए रुकावट बन जाता हैं . यह मन में विश्वास रखो की हर एक दीये को प्रभु ने रचा हैं और हर एक दीये में उसने अपनी लौ डाली हैं . अगर  एक जल उठा तो  सब जल उठेगे .......
_()_ हरी ॐ 

Friday, July 13, 2012

Balance your mind from center to periphery from periphery to center

Try balancing your mind from periphery to center and from center to periphery .
Many a times this question comes to me - Ma I am  lost .I not feeling any thing ,I have become worldly .Earlier I was growing ..I was getting cosmic vibes and many things were happening within .Now nothing is happening .Am I lost ?
Now mind happens on both layers some times you are on periphery ,you grow there .Learn from life and some times you come in center ..
Here I will like to quote OSHO'S lines on this subject .Guru is jadugar ( magician) he explains every thing in a most beautiful way .
[At center you are already a Buddha ,a Siddha who has arrived home .On the periphery you are in the world - in the mind ,in dreams ,in desires ,in anxieties ,in thousand and one games .And you are both .
There will be moments , glimpses of your own center . They cannot be permanent ; again and again you will thrown back to periphery .Then you will see you are not understanding ; stupid ;frustrated ;missing meaning of life - because you exist on two planes .The plane of periphery and plane of center .] Osho

You will feel it weird but by and by this weirdness will disappear and you will be able to sail your ship from periphery to center and from center to periphery .

Thursday, July 12, 2012

JOURNEY TOWARDS SHIVA WITHIN

AUM is the most sacred and mystical word . The word aum it self holds the whole process of this universe .
Mandukya Upnishad explains the divine beauty of the word AUM .It is said that Mandukya Upnishad alone is enough for salvation .
A U M meditation alone  can open your kundalini ,charge your aura and can take you in deep peaceful bliss
AUM is beej mantra of many mantras .Many mantras start from AUM and ends on AUM .
Daily chanting of AUM with  full awareness and devotion ,fills the seeker with deep peace and divine energy .This divine energy which  is created within the seeker moves upwards towards the crown chakra ....passing through all chakras and activating them ..This energy works as a catalyst in opening layers of cosmic dimensions .  
HOW TO START  CHANTING AUM MANTRA 
 AUM can be done in many ways . Each way has its own benefit .
  1)  start with few deep breaths 
  2) while exhaling do AAAAAAAAAUUUUUUUUUUUUMMMMMMM
  3 ) Do this daily at least for 20 to 30 minutes  
  4) in few days you will start feeling the change 
  5) when  meditation is  done with full dedication and surrendering  , it starts guiding you ..within you .
Just follow it as it guides to you . Your sound vibration will change as you will proceed with it .It means that now you have shifted to next layer .....

Daily chanting of aum in the morning will fill your aura with positive energy .  Aura charged with positives energy works as security shield and protects you from any kind of illness .
If you don't have much time then chant AUM mantra for at least 5 to 10 minutes daily .
sat guruway namah 
_()_ 

Wednesday, July 4, 2012

विश्राम

अंतस  की तल  में पहुच कर  आप विस्तार में लीन हो जाते हैं . मन शांत हो जाता हैं और निर्विकारिता उसकी पृष्ठ भूमि रहती हैं .......
जीवन के तल  पर होने  वाली कोई भी घटना  का  प्रभाव नहीं पड़ता ...
जीवन की धुरी पर काल  चक्र का प्रभाव बहुत  रहता हैं ...
एक ही इंसान हमें अपने जीवन चक्र में कई रूपों में दिखता हैं ...कभी   सज्जन ,कभी दुर्जन ,कभी दयालु और कभी दुष्ट ....एक ही जीवन में कई किरदार निभाता हैं ...
कभी उसे प्रेम और तारीफ के माले से सम्मानित किया जाता हैं तो कभी निंदा के गुलदस्तो  से भर दिया जाता ...जीवन कई रूप  दिखाती हैं ..किरदार की भी और अपनी भी .....
पर जो निर्विकार पृष्ठ भूमि हैं उस पर किसी भी घटना का कोई असर नहीं होता ......
जिन्होंने उस निर्विकार के सागर में छलांग   लगा दी हैं ....उन्होंने इस सत्य को समझ  लिया हैं   वे अब पूरण विश्राम .में हैं ........
मौन के सागर में आनंद का कमल
from the depth of deep dark ocean  the river of bliss falls

Tuesday, July 3, 2012

सीप छुपा अनमोल मोती

जब जब भीतर यह एहसास हो की ..मुझे स्वं  की खोज करनी हैं .मुझे मिटना हैं ....ध्यान में बैठने का मन होने लगे तो समझ  लेना की प्रभु तुम्हे पुकार रहे हैं . यह पूरा ब्रह्म्हांड  तुम्हे अपने आगोश में ले तुम्हे मिटा  ..तुम्हे पूरण रूप  के दर्शन करना चाहता हैं. इस  घटना  का एहसास तो हर एक आत्मा को महसूस करना हैं ....पर इस पल तुम बेहद सौभागशाली हो ..........स्वं को मिटा कर स्व  में ही मिल जाना का आनंद  हजारो जन्मो में भी जीवन  जी  लेने से भी कही ज्यादा मीठा होता हैं।  सीप  छुपा अनमोल मोती .....

Sunday, July 1, 2012

यह यात्रा मेरी या तेरी नहीं यह यात्रा भगवान की भगवान तक हैं .

भक्त के ह्रदय  में भगवन गुणगुनाते हैं . जब छोटी थी तो भगवन शिव की आराधना स्वं ही  मेरे ह्रदय  से निकलती रहती थी . मेरे लिए मेरे माता पिता वही थे . बचपन से ही अपने दुःख सुख उनसे ही कहती थी . उनसे मिलने में मेरा शरीर और मन कभी बाधा नहीं बना .थोड़ी बड़ी हुई तो सोचती थी कि मेरे ह्रदय से हर पल प्राथना ही निकलती रहती हैं .मै   मीरा जैसी भक्त हु ....जिसे सोते जागते केवल एक ही धुन सवार थी प्रभु मुझे मिटा दे .मेरा हाथ थाम ले . शरीर किसे भी कार्य में व्यस्त हो मन हर पल उसके आलिंगन में था .हर भाव जी रही थी मगर केवल इस लिए कि उन्हें समझ सकू .भीतर मुझे कोई राह दिखाता  रहा .कभी नाभि केंद्र से हनुमान चालीसा गुंजित होने लगता ..
 सारा दिन ऐसे बजता  जैसे भीतर कोई धुनी जल रही हो .और उसकी खुशबू  के आनंद से आंखे भीगती रहती ...प्रेम से ह्रदय भरा रहता .कभी विष्णु जी कि स्तुति होने लगती ......कभी रोम रोम ॐ से गुंजित रहता ....
नाभि केंद्र की धुनी में जैसी लगातार ही हवन चल रहा हो ....हर पल ही स्वं की आहुति हो रही हो .
रोम रोम एक सुगधित एहसास और आनंद से भीगा रहता ...........