Thursday, May 29, 2008

jyot se jyot jalate chalo

जब भीतर का दीया जल जाता है ,
तब उस दीये को बाकी दीये की पहचान छूट जाती है
वह केवल बाकी दीयो में रौशनी ही देखहै ,
जो उस के भीतर भी जल रही है ।
पहचान केवल उस रोशनी की रह जाती है जो उसे कण कण में जलती हुए दीखती है।
चाहे वह रोशनी पेड़ो में हो पत्तो में हो फूलों में हो या जीव जंतु में ,

पथरों में हो या कलकल करती पानी की बूंदों में ,
साधारण मनुष्य में या बुद्ध , महावीर या मीरा में ,
पहचान केवल उस लौ की होती है जो
हर जगह दीख रही होती है
अब उस की ख़ुद की पहचान छुट चुकी है
वह
मट्टी दीये में केवल अब जलती लौ को ही देखता है
मट्टी के दीये का मीटना ...personality dissolves
लौ का जल उठाना
truth is known ..lighted within

अगर आँखों को माटी के दीये की पहचान होती है
तो वह कभी भी divine light के दरशन
नही कर पता .

Friday, May 23, 2008

में का से कहू बतिया


ख़ुद के ही प्रेम में देखो लीन हुई मीरा ,

ख़ुद से ही देखो कैसा रास रचाया ,

उसकी ही थी बासुरी उसके ही थे सुर ,

ख़ुद को ही थिरकते हुए पा रही थी मीरा

ख़ुद से कैसा रास रचाया

नाच रही थी मीरा ॥