Wednesday, August 21, 2013


Thursday, August 15, 2013

LOVE

A real devotee is just like a small child in the hands of a BUDDHA . some times he plays with him .some times he cling on him.sometimes he argues and behaves pigheadedly but not for a single second leave the company of his SadGuru .Every moment he happens in the urja circle of his guru .Just like a child playing in its mother's lap .Came from womb ...played in the lap and dissolved in Womb 
_()_ namo arihantaye namay

Thursday, August 1, 2013

थाउजेंड पेटल लोटस

सत्य धर्म पर बढने वालो को अपनी जिहा ( वाणी) ,आत्मा और कर्म को सदैव निर्मल रखना  चाहिए  . गहरे ध्यान से ,समर्पण से सरे कुण्डलिनी  चक्र खुलने लगते हैं और उन पर स्थित देवी देवता प्रकट होने लगते हैं .हर एक  चक्र, एक काले ढक्कन से बंद हैं .जैसे जैसे यह ढक्कन खुलता जाता हैं, चक्र दिव्या प्रकाश से आलोकित होते जाते हैं .चक्रों की शुद्धता धीरे धीरे होती हैं .जब नीचे के सारे  चक्र शुद्धतम  स्थिति में आ जाते हैं। तब नीचे के चक्र एक डंडी के समान ,तथा मस्तिक के चक्र  उस  पर खिले एक विशाल फूल की तरह प्रतीत होते हैं . विशुद्धि चक्र से सहस्त्र धर चक्र एक विशाल  खिले हुए दिव्या ,तेज़ प्रकाश से आलोकित   पुष्प के सामान प्रकट हो उठते हैं  . मन,,वचन ,कर्म , बुद्धि एक अलोकिक दिव्यता से परिपूर्ण हो उठते हैं .इसे आत्मा की शुद्धतम  स्थिति कहा जाता हैं . आत्मा की पृथकता पूर्ण रूप से विलीन हो जाती हैं .आत्मा सम्पूर्ण शुद्धता निराकार ,निर्विकार ,अत्यंत गहन अंतरिक्ष होता हैं और शरीर एक सूक्ष्म अणु .