Thursday, January 30, 2014

ARE YOU SPENDING TIME WITH PAIN AND MISERY ?

ARE YOU SPENDING TIME WITH PAIN AND MISERY ?
Hmmm okkk this is also fine .This moment pain is your fellow mate ..now make pain your best friend and live its presence very very aware fully. Live it with full intensity and accept that you are in pain . If you really want to dive within then make pain your method of meditation . when you are in deep pain then don't fight with it .. become a spy of self and investigate within ...How my mind is working this moment ? what types of thoughts are coming in my mind ? what is the rhythm of my breath ? is it very fast or normal or very slow ? where in my body I am feeling pain ? what is the source of my pain ? keep investigating while tears are flowing from your eyes or your heart is aching .......let them respond to emotion of pain .don't stop your tears ......don't stop your mind ...JUST WATCH AND TRY TO INVESTIGATE .....MAKE PAIN YOUR METHOD OF MEDITATION . Feel within ...one part of me is body and other part of me is consciousness .Let your consciousness witness your body mind .

Wednesday, January 22, 2014

LOVE IS THE PASSAGE



WHY IS LOVE IMPORTANT ?
GOD is nothing but energy .Love teaches you the art of dissolving with the other soul . soul is also energy . The moment you know the art of dissolving with another soul ,you know the art of dissolving in the ultimate SOUL . In the SUPREME ENERGY .
Here we can even say that LOVE BECOMES THE PASSAGE to enter in the void . WHY SO MANY GOPIS WHERE IN LOVE WITH KRISHNA ? Because Krishna was the master soul ..THE GATE for other souls to pass . He took many souls who were in form of gope and gopis towards baikunth dham ( the place of lord vishnu in other dimension )

Tuesday, January 14, 2014

To attain KNOWLEDGE is big thing ,then to absorb it in one self is much bigger thing ,then to digest it is much bigger and to get detach from it is real wisdom .

Saturday, January 11, 2014

Photo: बुद्ध ने संघं शरणं गच्छामि क्यों कहा? कृपाकर हमें इसका अभिप्राय समझाएं।ये हैं तीन रत्न—

बुद्धं शरणं गच्छामि,

संघं शरणं गच्छामि,

धम्मं शरणं गच्छामि।
 इनके पीछे एक तर्कसरणी है। समझो।
पहले तो बुद्ध के प्रति। बुद्ध का अर्थ गौतम बुद्ध नहीं है। इस भ्रांति में मत पड़ना। बुद्ध का अथई है, बुद्धत्व। 
दूसरी समर्पण की धारणा है—संघं शरणं गच्छामि। संघं का अर्थ होता है, उन सबको जो जागे हैं। उन सबको जो जाग रहे हैं। उन सबको जो जागने के करीब आ रहे। उन सबको जो करवट ले रहे. इसका मूल अर्थ तो यही हुआ न कि जिन्होंने स्रोत में प्रवेश कर लिया, जो स्रोतापन्न फल को प्राप्त हो गए। जिन्होंने संन्यास लिया है.
।संघं शरणं गच्छाम

और भी एक कदम आगे बात उठती है, क्योंकि संघ की शरण जाने का अर्थ हुआ, जो सत्य की खोज कर रहे हैं उनकी शरण जाता हूं। बुद्ध की शरण जाने का अर्थ हुआ, जिसने सत्य पा लिया है उसकी शरण जाता हूं। 
 धम्मं शरणं गच्छामि का अर्थ होता है, बुद्ध की शरण भी तो इसीलिए गए न कि उन्होंने सत्य को पा लिया, और संघ की शरण भी इसीलिए गए न कि वे सत्य की खोज में जा रहे हैं, तो सत्य की ही शरण जा रहे हो, चाहे बुद्ध की शरण जाओ, चाहे संघ की शरण जाओ। इसलिए, धम्मं शरणं गच्छामि।
धम्म का अर्थ होता है सत्य। जो परम सत्य है, वही धर्म है।तो तीसरा रत्न है—धम्मं शरणं गच्छामि। तीसरी शरण में जाकर तुम समस्त की शरण में चले गए—सार्वभौम है धर्म। पहले बुद्ध की शरण में गए, वह एक; फिर संघ की शरण में गए, अनेक, फिर धर्म की शरण में गए, सर्व। सार्वभौम। विसर्जन पूरा हो गया। इसके पार विसर्जन करने को कुछ है नहीं। तुम उससे एक हो गए, जो है।तो तीसरा रत्न है—धम्मं शरणं गच्छामि। तीसरी शरण में जाकर तुम समस्त की शरण में चले गए—सार्वभौम है धर्म। पहले बुद्ध की शरण में गए, वह एक; फिर संघ की शरण में गए, अनेक, फिर धर्म की शरण में गए, सर्व। सार्वभौम। विसर्जन पूरा हो गया। इसके पार विसर्जन करने को कुछ है नहीं। तुम उससे एक हो गए, जो है।
बुद्ध ने संघं शरणं गच्छामि क्यों कहा? कृपाकर हमें इसका अभिप्राय समझाएं।
ये हैं तीन रत्न—

बुद्धं शरणं गच्छामि,

संघं शरणं गच्छामि,

धम्मं शरणं गच्छामि।

पहले तो बुद्ध के प्रति। बुद्ध का अर्थ गौतम बुद्ध नहीं है। इस भ्रांति में मत पड़ना। बुद्ध का अथई है, बुद्धत्व। 
दूसरी समर्पण की धारणा है—संघं शरणं गच्छामि। संघं का अर्थ होता है, उन सबको जो जागे हैं। उन सबको जो जाग रहे हैं। उन सबको जो जागने के करीब आ रहे। उन सबको जो करवट ले रहे. इसका मूल अर्थ तो यही हुआ न कि जिन्होंने स्रोत में प्रवेश कर लिया, जो स्रोतापन्न फल को प्राप्त हो गए। जिन्होंने संन्यास लिया है.
    

  संघं शरणं गच्छामि  


 संघ की शरण जाने का अर्थ हुआ, जो सत्य की खोज कर रहे हैं उनकी शरण जाता हूं। बुद्ध की शरण जाने का अर्थ हुआ, जिसने सत्य पा लिया है उसकी शरण जाता हूं। 

धम्मं शरणं गच्छामि का अर्थ होता है, बुद्ध की शरण भी तो इसीलिए गए न कि उन्होंने सत्य को पा लिया, और संघ की शरण भी इसीलिए गए न कि वे सत्य की खोज में जा रहे हैं, तो सत्य की ही शरण जा रहे हो, चाहे बुद्ध की शरण जाओ, चाहे संघ की शरण जाओ। इसलिए, धम्मं शरणं गच्छामि।
धम्म का अर्थ होता है सत्य। जो परम सत्य है, वही धर्म है।
तो तीसरा रत्न है—धम्मं शरणं गच्छामि। तीसरी शरण में जाकर तुम समस्त की शरण में चले गए—सार्वभौम है धर्म। पहले बुद्ध की शरण में गए, वह एक; फिर संघ की शरण में गए, अनेक, फिर धर्म की शरण में गए, सर्व। सार्वभौम। विसर्जन पूरा हो गया। इसके पार विसर्जन करने को कुछ है नहीं। तुम उससे एक हो गए, जो है।तो तीसरा रत्न है—धम्मं शरणं गच्छामि। तीसरी शरण में जाकर तुम समस्त की शरण में चले गए—सार्वभौम है धर्म। पहले बुद्ध की शरण में गए, वह एक; फिर संघ की शरण में गए, अनेक, फिर धर्म की शरण में गए, सर्व। सार्वभौम। विसर्जन पूरा हो गया। इसके पार विसर्जन करने को कुछ है नहीं। तुम उससे एक हो गए, जो है .