Wednesday, October 31, 2012


लोग कहते हैं की शरीर मिथ्या हैं .यह माया हैं . मगर मै इसे माया नहीं मानता .अगर हैं माया हैं तो फिर कैसे कर्म ? और कैसा उन कर्मो का फल ? माया में तो कोई कर्म और उसका फल नहीं होना चाहिए ? 
मा परमतीर्थ  -बिलकुल   कैसा कर्म कैसा फल ? शरीर माया के जाल में होता हैं .मन माया के प्रभाव  में होता हैं .इस लिए इस माया से उत्पन्न कोई भी भाव मिथ्या ही हैं .इसको इस तरह समझते हैं .हम नीद में कई सपने देखते हैं .सपने में देखी  गयी हर घटना हमें असली ही लगती हैं .जब तक हम सपने में होते हैं हमें लगता ही नहीं की हम सपना देख रहे हैं .सब कुछ असली लगता हैं . सपने का मिथ्या होना लगता ही नहीं .सपने में हम लोगो से मिलते हैं .उनसे बातें करते . नाचे गाते हैं .आफिस जाते हैं .लोगो से प्रेम करते हैं .झगडे करते हैं .वह सारी क्रिया कलाप करते हैं जो हम जागृत अवस्था में करते हैं  .क्या सपने में आपको यह प्रतीत होता हैं की वह सपना हैं .? हम उस सपने में इतने खो जाते हैं की उस  में मिले दुःख से हमारे शरीर से आसू गिरने लगते हैं .कभी सपने में इतने प्रसन्न हो जाते हैं की जोर जोर से हसने लगते हैं .आस पास के लोग  जो जागृत अवस्था में हैं ,कहते हैं " देखो यह सपने में बोल रहा हैं ,हँस रहा हैं .लगता हैं कोई अच्छा  सपना देख रहा हैं ."यह केवल जागृत लोगो को ही दिखता हैं की आप सपने में हो .यह आप को एहसास नहीं होता की आप सपने में हो .जब नीद खुलती हैं सपना टूटता हैं तो ज्ञात होता हैं की यह तो सपना था .फिर आप उस में किये गए कर्मो का कोई हिसाब किताब नहीं करते हो . आप यह नहीं सोचते हो की सपने में किये गए पुण्य या पाप का फल क्या होगा .सपने में आपके कर्म अच्छे थे या बुरे ? आप उठ कर दैनिक काम में लग जाते हो .उसी तरह यह जीवन भी एक सपना हैं .इस सपने हम धीरे धीरे खोते जाते हैं .अगर नीद का सपना कुछ घंटो का हैं और आंख खुलने से टूटता हैं .तो जीवन का सपना शरीर के मरने से टूटता हैं .मगर यह जीवन का सपना पहले भी टूट सकता हैं .जिस तरह कई सपने पूरी रात नहीं चलते  .कई बार सपने  मध्य रात्रि में ही टूट जाते हैं और आप बिस्तर पर लेटे लेटे सोचते हो, की देखो तो मै तो सपना देख रहा था .यह तो इतना असली जैसा था की मुझे ख्याल भी नहीं था की यह सपना हैं .यह माया द्वारा बुना गया जीवन का सपना भी शरीर रहते टूट सकता हैं .मगर इसके लिए जीवन से विराग उत्पन्न होना आवश्यक हैं .जब तक तुम्हारे  सपने में राग हैं ,रस हैं तब तक सपना चलता रहेगा .गहरा होता जायेगा .क्युकी सपने के हर भाव में तुम रस ले रहे हो .  जब तक सपने से विराग  का अनुभव नहीं होगा तब तक यह सपना नहीं टूटेगा .जब सपने से विराग उत्पन्न होगा तो तुम जागने की प्रक्रिया में आओगे .फिर धीरे धीरे इस सपने से जागने लगोगे .सपना टूटने लगेगा .बड़ी बेचैनी होगी .इस सपने से बड़ा गहरा रिश्ता जुड़ा हुआ था .मगर सपने का टूटना आवश्यक हैं .अगर सत्य देखना हैं तो सपने से उठाना ही होगा .क्युकी सपने में देखा गया सत्य सपने के सामान ही मिथ्या हैं. तुम सपने में होते हो तो तुम्हे पता नहीं चलता की यह सपना हैं .यह केवल उस पल जागृत लोगो को ही पता चलता हैं की तुम सपना देख रहे हो .उसी तरह जीवन के सपने से जागृत लोगो को ही यह पता चलता हैं की तुम जीवन रूपी सपने में खोये हो . उठ जा मुसाफिर भोर भाई ,अब रैन कहा जो सोवत हैं  ..जो सोवत हैं सो खोवत हैं जो जगत हैं सो पावत हैं .शरीर जाने को हैं .समय काम हैं इस शरीर में .बहुत रैन बिता दिए सोने में ..अब उठ जा मुसाफिर .अब तो उस परमब्रह्म से मिलने की तैयारी  कर ...सुबह होते ही पंछी घोसला छोड़ कर नीले आकाश में उड़ जाते हैं .हे आत्मन अब भोर होने को हैं तू भी शरीर रूपी घोसले का मोह छोड़ आकाश में विलीन हो जा . जिस पल यह शरीर मृत्यु को उपलब्ध होगा उसी पल इस से जुड़े सारे रिश्ते भी ख़तम हो जाते हैं . कभी यह सोचा हैं की इस शरीर में आने से पहले और कितने  जनम लिए होंगे ? हर जनम में परिवार होगा ,बच्चे होंगे ,पति या पत्नी होगा ,रिश्तेदार होंगे समाज होगा .उस जनम में भी जीवन से जुड़े सारे कर्म निभाए होंगे .अगर जीवन से जुड़े सारे कर्म निभाए सब कुछ ठीक ठाक जीया तो फिर बार बार शरीर में क्यों रहे हो .क्यों बार बार जनम ले रहे हो .कोई तो कारण होगा .अपने भीतर यह सवाल पूछो की क्यों तुम्हे अलग अलग शरीर दिया जा रहा हैं ? ऐसा कौन सा काम हैं जो अभी भी अधुरा हैं .जिसे हर जनम तुम चुक रहे हो .तुम्हे शरीर के रिश्तो का तो ध्यान हैं पर उस रिश्ते का क्या जो शरीर के बाद भी रहता हैं .जहाँ शरीर छुटने के बाद आत्मा चली जाती हैं लेकिन फिर कुछ समय बाद शरीर धारण  कर लेती हैं .क्यों आत्मा बार बार शरीर धरती हैं ? इस पर विचार करो .क्यों बार बार परमब्रह्म द्वारा इस सृष्टि द्वारा उसे जनम की माया में डाला जाता हैं .आत्मा अन्नंत का हिस्सा हैं .उसकी कभी मृत्यु होती हैं ही  जनम वह सतत हैं . वह ब्रह्म हैं परन्तु शरीर में आने के बाद माया के प्रभाव में वह यह मुलभुत बात भूल जाती हैं.बार बार वह जनम लेती हैं ताकि  शरीर में रहते ही वह उस मुलभुत बात को अपने भीतर वापिस प्राप्त कर ले .समझ ले .जिस दिन शरीर में रहते हुए जीव रूपी आत्मा परमात्मा से एकीकार हो जाता हैं उसी पल वह इस आवागमन से मुक्त हो जाता हैं ..._()_ हरी