Saturday, August 30, 2008




माँ तेरी चरणों में सत् सत् प्रणाम ,

तेरी गोद में सर रख मैं मिट जाती हुँ ,

यह तेरी ही कृपा है माँ की

इस कंठ से प्रभु की अंतरिम धवनी निकलती है,

यह कंठ परमपिता की बासुरी बन चूका है

अब तो उसके ही स्वर यहाँ से गुण गुण कर हवा में घुल रहे है ,

ऐसा लगता है जैसे तुम ही इस कंठ पर बैठ कर परमपिता के सुर गाती हो

और मेरे मध्यम से पूरी दुनिया इस से अभिभूत होती रहती है .

हे माँ तेरे दर्शन से मैं तृप्त हुई ।

तुझे सत् सत् प्रणाम


Friday, August 22, 2008

मै मृत है , जीवन सतत है





कभी कभी युही कमरे में बैठ कर देखो जैसे हो ही नही ,


जैसे की तुम्हारी मृत्यु हो चुकी हो ।


सारा खेल वैसे ही चलता रहेगा ,


सारा काम वैसे ही होते रहेगे


घर वाले रोज मरा के काम वैसे ही निपटते दीखेगे


सूरज वैसे ही निकलेगा और शाम वैसे ही ढल जायेगी




किसी दिन ख़ुद की ही चिता जला कर देखो


जीवन और मृत्यु का अनोखा खेल


कई कई शरीरो से खेला जाता रहा है


बस किसी दिन युही इस खेल को जीवन में होते हुए भी मृत बन


कर देखो ।


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Tuesday, August 19, 2008

रसरी आवत जात सील पर पडत निशान


घर के पत्ते पत्ते ...पेड पौधे ..आस पास का पूरा वातावरण राम.... राम की गूंज कर रहा है । खिले खिले फूलो की खुशबू भी जैसे सिर्फ़ परम ब्रह्म की ओर उठ रही हो.ऐसा महसूस हो रहा है मानो मैं किसी देवतालाब में एक कमल के सामान हुँ , जो हर सु .......... से उठते हुए राम नाम की साक्षी मात्र हैं ।
आमीन
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