Monday, August 20, 2012

प्रेम सौगात

सुमिरन से सुख आत हैं ,सुमिरन से दुःख जात .
                                                 भव सागर से पार ले जावे मल्लाह बने भगवान.
सुमिरन से सुख आत हैं सुमिरन से दुःख जात ,
पल में निर्मल होए हैं ,जब बरसे प्रेम सौगात .
बाबरी बनी मै इतराऊ ,जो लगी परम घाट 
सुमिरन से सुख आत हैं सुमिरन से दुःख जात 
निर्मल तन मन होए हैं जब बरसे प्रेम सौगात
लोग कहे मै बाबरी मेरी आखन गयो बिलाए ,
मन की आखन जो देखू तोहे पिया अब मोरे कोई आखन का चाए
सुमिरन से सुख आत हैं सुमिरन से दुःख जात 
लोग कहे मै बाबरी मेरो पैरन गयो बिलाए ,
जो चरण पड़ी मै तोहे प्रभु अब मोरे आपन पैर न भाए 
लोग कहे मै बाबरी मोरे रूप गयो बिलाए .
तेरो रूप जो मै भई प्रभु अब मोहे आपण रूप  सहो न जाये 
सुमिरन से सब दुःख कटे ,सुमिरन पार लगाये 
हिरदय सागर में डूब कये मोरे छवि गयो बिलाए.
 सुमिरन सुमिरन सुमिरन कर सुमिरन पार लगाये 
कहे कुम्हार अब माटी से तुने क़र्ज़ दियो उतराए मैंने तुझको था गढ़ा
तुने खुद में मेरो छवि बनाये 


- अनीता  

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