Friday, June 7, 2013

प्रेम

परमात्मा  के प्रेम को समझने के लिए पहले किसी इंसान से प्रेम करना बेहद जरुरी होता हैं .जब कोई किसी से प्रेम करता हैं तो वह विलीन होने की ,घुल जाने की कला को सीख लेता हैं .एक बार जब आत्मा किसी अन्य आत्मा के संग घुल जाती हैं dissolve हो  जाती हैं .तो वह परमात्मा में  भी घुल जाने की कला को सीख लेती हैं .इस लिए परमात्मा से मिलना हैं तो प्रेम के भाव को समझना जरुरी हैं.
प्रेम के भाव को भी समझना हैं, तो प्रेम भी टूट कर  करना .पूरी तरह अपने को प्रेम के भाव में समर्पित कर देना .खुद को पूरी तरह उस में बहने को छोड़ देना .तुम्हारे   इस गहन प्रेम को  तुम्हारा प्रेमी या प्रेमिका समझे या न समझे परमात्मा उसका साक्षी अवश्य रहता हैं .तुम्हे तुम्हारा प्रेम यहाँ मिले या न मिले मगर परमात्मा तुम्हे अवश्य मिल जाता हैं .इस लिए किसे से भी प्रेम करो तो टूट कर करना केवल प्रेम ही बन जाना .प्रेम अपने संग बहुत  सारे  भाव ले कर आएगा .तुम उन सब भाव को जीते हुए देखना .कोई धारणा मत बनाना की प्रेम में केवल प्रेम ही होता हैं .प्रेम अपने भीतर कई सारे  भावो को ले कर आता हैं .इर्ष्या ,क्रोध ,रूठना ,मनाना ,प्रेम में घुल जाना फिर रोने लगना ,आनंदित होना ,धन्यवाद देना  सब आता हैं .प्रेम की  एक पैकेज होती हैं .जैसे जैसे प्रेम में प्रवेश करोगे यह  पैकेज तुम्हारे सामने खुलने लगेगी .इस प्रेम की गठरी को भी बड़े प्रेम से खोलना और जीना .प्रेम मार्ग में तुम गहरे दुःख और सुख से गुजरोगे .सब जीना .इस मार्ग को आधा पार  करते ही तुम्हे परमात्मा के दर्शन होने लगेगे .बस बढ़ते जाना . प्रेम के उस द्वार पर तुम अपने प्रेमी के माध्यम से परमात्मा में प्रवेश कर लोगे .अति आनंद के पल होगे .यह तुम्हारे जीवन का परमानन्द पल होगा .प्रेम में प्रेमी ,या प्रेम करने वाला राधा बन जाता हैं और उसका संगी कृष्ण .जिस तरह राधा कृष्ण से टूट कर प्रेम करती थी ,प्रेमी भी उसी प्रकार खुद को कृष्ण रुपी संगी को खुद को समर्पित कर देता हैं .और अन्तः कृष्ण में ही विलीन हो जाता हैं .

._()_ हरिओम 

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