Saturday, March 1, 2014

भय --- सम्भोग

अज्ञानता ,संभोग ,भय तीनो में नशा हैं। लोग अज्ञानता में रहना ज्यादा पसंद करते हैं क्युकी अज्ञानता में मूर्छा हैं और मूर्छा में नशा हैं। पूरी दुनिया इस तरह के नशे में रहना पसंद करती हैं। इस नशे में ही उन्हें सुख मिलता हैं। शराबी को देखा हैं? शराब के नशे में वह मस्त रहता हैं। उसके लिए वही सच्ची दुनिया हैं ,वह उस मद से बाहर आकर दुनिया के यथार्थ का सामना नहीं करना चाहता। उसी तरह अज्ञानता की गहरी मूर्छा को तोड़ कर सत्य को रुबरु देखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। यह ऐसा ही होगा जैसे गहरे रंग से रंगे शीशे को खुरच कर उस में से धुप को भीतर आने का जगह बनाया जाए। नशे की आदत को छोड़ना कठिन होता हैं और नशेड़ियो की जमात से निकल कर अकेले खड़े होना उस से भी ज्यादा कठिन। मेरी आत्मा रोती हैं जब मैं जीवंत आत्मा को शरीर के मोह में ,शरीर के मद में डूब कर इस तरह मूर्छित जीते हुए देखती हु। आत्मा प्रकाश हैं। तुम प्रकाश पुंज हो। तुम्हारा काम अँधेरे का नाश करना हैं। अँधेरे में आकर खुद का ही अस्तित्व खो देना नहीं हैं। भीतर के सूर्य की ओज को बढ़ाओ और अज्ञानता रूपी अंधकार से जागो। हरिओमतत्सत _()_

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