Tuesday, September 22, 2015

इंसान की फितरत देख कर जान लो उसके चक्रो की गति

इंसान की फितरत देख कर जान लो उसके
 चक्रो की गतिजो मोह  ,तृष्णा ,भय ,घृणा ,क्रूरता और आलस्य में हो तो जान लो की मूलधारा,स्वधिस्तान ,मणिपुरम पशुवत्  पड़ा हैं। जो ह्रदय चक्र रहे सोता तो लिप्सा ,कपट ,कुतर्क ,चिंता , दंभ ,अविवेक ,अहंकार से साधक भरा पड़ा हैं। जो कंठ विशुधि  हो जागृत तो तो बहे सुरधारा सरस्वती की। नाश  दुर्गुणों  का हो ,दिव्य  श्रवण हो ,परोक्ष अनुभूतियों से साधक सजने लगता है। जो मणि त्रिनेत्र की भृकुटियों के बीच सज़ जाए तो हो जाये दर्शन स्वंभू  का , मिट जाये तम ,खो जाये संसार और हो मिलन आत्मा और परमात्मा का। जो बंद हो यह नेत्र तो सारा सच संसार हैं जो खुल जाए तो सब भगवान हैं।  जो खुले सहस्रार तो धरती से आकाश तक खुले  मार्ग ;महामार्ग। सात आकाशो का भ्रमण हो मिले सतगुरु हज़ार

 मेरुदण्ड की यात्रा है पाताल से आकाश तक. हाथ जोड़ो नमन करो ,सतगुरु का ध्यान करो। ।जो प्रकाश रुपी सतगुरु ह्रदय में समाहित हो तो प्रकाश से प्रकाश का यह मिलान स्वाभाविक हो। माँ अनीता

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