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जब श्रद्धा और भक्ति के फूल खिलते है तो वहाँ सुगंध परम पिता परमेश्वर की होती है ।
जब ऐसे फूल आपस में मिलते है तो उनके बीच केवल सुगंध होती है ,फूल का होना भी मिट जाता है .कबीर की यह पंक्ति कितनी प्यारी है इस सम्बध में .........................
'आतम अनुभव म्यान की ,जो कोई पूछे बात। सो गूंगा गुड खाइके ,कहे कौन मुख स्वाद .
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जो गूंगे के सैन को गूंगा ही पहचान । त्यों ज्ञानी के सुख को ,ज्ञानी होए सो जान । '
जिस तरह गूंगा गूंगे की बात बिना कहे ही जान लेता है उसी तरह ज्ञानी भी जब आपस में मिलते है तो मौन में ही सारी बातें हो जाती है ।गूंगे को गूंगे से कहने की कोई जरुरत ही नही होती .
या यू कहे की कोई बात होती ही नही कहने की
2 नदियों की तरह चुप चाप बहते चले जाते है और बीच में बहती है
मौन
सिर्फ़ मौन ........
प्रेम ...............
परमात्मा ... ..... ..................
परम शान्ति होती है ....................................................
_()_आमीन
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