Friday, April 4, 2008


जब कोई पानी को अपनी मुट्ठी में जोर से पकड़ने की कोशिश करता है तो पानी उतनी ही तेज़ी से उसके हाथो से फिसल जाती है



पर जब कोई उससे अपने चुलू (हथेलियों ) के बीच धीरे से संभल कर रखता है तो उसके हाथ भी भीगे रहते है और पानी ठंड़क भी महसूस करता रहता है ।


ठीक उसी तरह अगर तुम प्रभु के प्रेमियों को बंधनों में बान्धने की कोशिश करोगे तो वह पानी की तरह तुम्हारे पकड़ से फिसल जायेगे



लकिन अगर तुम उनकी संगत का आनद लोगे तो तुम भी प्रभु के अपरं प्रेम को अपने भीत्तर जीने लगोगे ।



मीरा को बाधोगे तो वह राज्यवाडे को छोड़ देगी मगर उसके रंग में संग हो लोगे तो तुम्हे प्रभु प्रेम की सागर में डुबो देगी .

2 comments:

jyotsana said...

u seem to b an osho lover. so am i.the blog is beautiful and profound.....not that u needed these words to carry on the good work.love

Unknown said...

_()_

thnk u frd