Wednesday, July 27, 2011

हम पंछी उन्मुक्त गगन के


आज सुबह जब ५ बजे मै बगीचे में गई तो ,
नज़ारा बड़ा ही अदभूत था .ठंडी हवायो के धुन पर
पेड़ो के पत्ते झूम रहे थे ,चिडियों के गुंजन से वातावरण सुरमय था .
ठंडी हवा जब मुझे छु रही थी तो ,
ऐसा लग रहा था जैसे में भी एक पत्ता हु जो हवा के मधुर स्पर्श से ही झूमने लगा था .
आसमान सूर्य देवता के आने का सन्देश देने लगा था .
अदभूत ,अनोखा,आह्लादित करने वाला समां था .
यह नज़ारा मै हर रोज़ सुबह देखती हु ,कभी चिड़िया बन कर ,कभी पत्ता बन कर ,कभी शरारती हवा बन हर ,
और कभी इन का रचनाकार बन कर ,खुद ही नाचने लगती हु .
मन से एक कदम आगे बढ़ कर इन को देखो ,हर कुछ रूमानियत से भरा दीखेगा .
जैसे हर एक के भीतर प्रेम रस छलक रहा हो ,सब जैसे उस परम प्रेम रस से भरे नाच रहे हो .उसे परम पिता के भीगे धुन में सब डूबे हो .
मन का बंधन तोड़ कर देखो .मन का मटका फोड़ कर देखो
समझ का आयाम केवल ज्ञान की बातों को ही पढने से ,ध्यान करने से नहीं खुलता ,
बल्कि अपने आस पास के माहौल प्रति जागरूक होने से भी खुलता हैं .
तुम रोज़ ही मन की खिड़की बंद कर उस में रहते हो .
सुबह सुबह जब उठो तो घर की खिड़की ही नहीं मन की भी खिड़की खोल दो
उड़ जाओ अंतस के मुक्त आकाश में .मन से एक कदम आगे बढ़ कर देखो ...............................................
देखो हर तरफ प्रेम ही प्रेम हैं ..............
प्रेम का ही सागर हैं .

1 comment:

Anonymous said...

..............