Wednesday, July 27, 2011

पिहू पुकारे पिया को

एक खोजी के ह्रदय की पुकार वैसी ही होती हैं ,
जैसे प्यासी धरती की प्यास ।
जब यह दोनों पुकारते हैं तो आसमान झूम झूम कर बरसने लगता हैं ।
जिस तरह प्यासी धरती बारि की हर बूंद को भीतर समां लेती हैं,
और पानी उसके गर्भ में जा कर (core में ) जमा हो जाता हैं .
उसका सतह फिर पहले जैसा हो जाता हैं ।
उसी तरह एक प्रेमी पर जब ज्ञा की(wisdom) की बारिश होती हैं तो वह उससे रोम रोम से पी लेता हैं ।
उसके शरीर पर कोई बदलाव नहीं होता पर ज्ञान भीतर उसके core में जमा हो जाता हैं ....................................
एक प्रेमी जब परमपिता या सद्गुरु से जब कोई सवाल पूछता हैं तो वह खुद को सद्गुरु की तरफ ,निर्विकार की तरफ खोल देता हैं । एक फूल की भाती अपना रोम रोम ,पंखुड़ी पंखुड़ी प्रभु की तरफ खोल देता हैं .उसका प्रश्न केवल एक प्रश्न नहीं होता उसके आत्मा की पुकार होती हैं ,खुद को जानने की ......
यह पुकार जब सद्गुरु को छु कर लौटती हैं तोवाब के रूप में ,फूलो के रूप में प्रेमी प बरसती हैं ।
और प्रेमी इससे अपने भीतर समां लेता हैं ,मिट जाता हैं .अमृत अमृत हो जाता हैं । इस मोती को भीतर समेत कर फिर से नाचने लगता हैं ।
हरी ॐ तत सत

1 comment:

sunil said...

hari aum tatsat..pranam Ma...