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Friday, July 20, 2012
अपनी हसी को धयान की विधि बना ले
जब भीतर आनंद की अनुभूति होती हैं तो उसकी अभिव्यक्ति हसने और रोने दोनों रूपों में होती हैं . स्त्रिया प्रेम में ,ध्यान में आनंद बरसने पर रोने लगती हैं पुरुष मस्ती में खिलखिला उठते हैं .पुरुष अपनी इसी हसी को ध्यान की घटना बना सकते हैं और स्त्रिया अपने रोने को ध्यान की विधि बना सकती हैं . जब भीतर आनंद की अनुभूति होने पर हसी उठे या रोना आये ,तो उसे रोकना मत . जी भर के रोना .. भीतर से खूब जोर की रुलाई उठेगी . उसे होने देना .खूब रोना ...तुम रुलाई को फुट फुट कर निकलने में सहायक रहना ...रोते रोते एक पल आयेगा जब रोना स्वं ही बंद हो जायेगा .भीतर गहरी शांति और विस्तार का अनुभव होगा . धीरे धीरे प्यारी सी हसी फूटने लगेगी .एक अनोखे आनंद का भीतर एहसास होगा . इसी तरह पुरुष अपनी हसी को ध्यान की विधि बना सकते हैं . हसी फूटने पर .हसी के सहायक हो जाए .उसे फूटने दे . हसी की तीव्रता बढ़ जाएगी . हसी ठहाको में बदलने लगेगी .खूब ठहाके फूटने दे . यह क्रिया १/२ घंटे ,१ घंटे या २ घंटे भी चल सकती हैं .इसे रोके मत ..होने दे ...फिर यह स्वं ही बंद हो जाएगी . गहरी शांति का ,भीतर विस्तार का अनुभव होगा . एक सच्चा खोजी गहरे संकल्प से ,जीवन को अपनी प्रयोग शाला बना कर जीता हैं . वह जीवन की हर क्रिया को ही ध्यान की क्रिया बना लेता हैं .जब तक वह घर नहीं पहुच जाता ,स्वं को दूढ़ कर स्वं में लीन नहीं हो जाता ,उसे चैन नहीं मिलता .उसकी आत्मा एक प्यासे हिरन की तरह बेचैन रहती हैं . _()_ हरी ॐ
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