Sunday, September 7, 2014

कुण्डलिनी साधना और देवी देवता के दर्शन



मंत्रो से ध्यान मुझे निजी तौर से पसंद हैं .कई बार जब मै मंत्रो के  जाप से ध्यान की शुरुवात करती थी तो कुछ ही  पलो में मंत्रो की धारा बदल जाती थी . का उचारण जोर जोर से होने लगता. कई बीज  मंत्र खुद खुद फुटने लगते . मंत्रो की ध्वनि का वेग और तरंग तीव्र होता जाता था  .पूरा कमरा मंत्रो की गुंजार से गुंजित हो जाता .उर्जा तेज़ी से नाभि केंद्र से उठने लगती ,शरीर आगे- पीछे, दाये- बाये तेज़ी से झूमने लगता .

 


  दिन ऐसी ही अवस्था में मुझे पहली बार माता लक्ष्मी के दर्शन हुए .माँ मेरा हाथ पकड़ कर एक नए लोक में ले गयी . वहां  मैंने श्री हरी विष्णु के दर्शन  किये. यहाँ मुझे बताया

गया की यह बैकुंठ धाम हैं

मै आश्चर्य चकित रह गयी .अब  तक मै यही समझती थी की यह सब कोरी बातें हैं .ऐसा कोई लोक नहीं होता .पर माता लक्ष्मी ने एक ही पल में मेरे भीतर के इस संशय को मिटा दिया था .मै बेहद आह्लादित थी .पहली बार मुझे यह मालूम हुआ था की ये लोक वाकई में विद्यमान हैं और साधक को वहां समय आने पर वहा ले जाया जाता हैं.  

 

मेरी उर्जा एक चक्र से उठ कर  दुसरे चक्र  तक जाती और उस चक्र को विकसित करने लगती . फिर मै उस चक्र पर लगातार ध्यान करती रहती थी .  मुझे उस चक्र के गुरु का दर्शन होने लगता .मेरी उर्जा उनकी उर्जा से मिल जाती . मुझे उनका आशीर्वाद मिलने लगता.


 ऐसे अवस्था में अनेको बार मुझे भगवान विष्णु के दर्शन होते .आँखों से अश्रु धारा तेजी से बहने लगती . मै  उनके सीने से लग जाती और बिखल बिखल  कर रोते हुए प्राथना करती की, प्रभु मुझे मिटा दो .तुम मुझे खुद में समाहित कर लो . हे परमपिता मै पूरे प्रयास और श्रधा से खुद को तुम्हे समर्पित करती हु .इसका प्रसाद तुम मुझे क्या दोगे यह मै नहीं जानती .मेरे बस में केवल तुम्हे खुद को समर्पित कर देना ही हैं . तुम मेरा समर्पण स्वीकार करो . ध्यान की अवस्था में मै कई कई बार देखती की मै पीली  उर्जा पुंज के रूप में शरीर से निकलती और बैकुंठ पहुच जाती . 

वहां श्री हरी विष्णु के ह्रदय में जा कर समाहित हो जाती. विशुद्धि चक्र पर माता सरस्वती के ,आज्ञा चक्र पर अर्द्ध नारीश्वर के तथा ब्रह्म्केंद्र पर ब्रह्मदेव और माता गायत्री के मुझे दर्शन हुए .


 ( यह कुछ अनुभव मेरे किताब 
मौन सागर का ब्रह्मकमल

माया से मोक्ष तक की यात्रा 
 से )

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