
मत कर मोह तु, हरिभजन को मान रे.
नयन दिये दरशन करने को,
श्रवण दिये सुन ज्ञान रे ... मत कर
वदन दिया हरिगुण गाने को,
हाथ दिये कर दान रे ... मत कर
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
कंचन निपजत खान रे ... मत कर
कल माँ देवसोमा अपने गाने के क्लास में यह भजन गा रही थी ,
इतना मीठा भजन ,इतने मीठे सुरों में की मेरा रोम रोम भीज गया मधुरं से ,
आँखों की गंगा., शिव (परम ब्रह्म ) का स्पर्श पाते ही बह चली ...
मत कर मोह तू ,हरी भजन को मान रे
नयन दिए दरसन करने को

प्रभु ने यह आंखे केवल दुनिया देखने
को ,या लोगो में खोट देखने को नहीं दी हैंबल्कि इन नयनो में इतनी अपरं शक्ति दी हैं कि तुम प्रभु के दरसन कर सको
सब के चित में तुम राम के दरसन करो
श्रवण दिये सुन ज्ञान रे .
श्रवण दिये सुन ज्ञान रे- कण दिए की ज्ञान की बातें सुनो ,
ज्ञान की बातें का अर्थ यह नहीं की घर में बैठ कर सारा दिन प्रवचन सुनो .
अर्थ हैं की जो भी तुम सारा दिन दुनिया में सुनते हो , देखते हो
उस से भीतर ज्ञान का दीपक जलाओ
जैसे मधुमखी फूलो पर बैठ कर फूल इकठा नहीं करती बल्कि उसका रस पि लेती हैं .
तुम भी दुनिया में रह कर ज्ञान रुपी रस पि लो .
वदन दिया हरिगुण गाने को,
...
...
यह शरीर दिए हरी गुण गाने को ,हरी गुण का अर्थ ,
सारा दिन केवल भक्ति संगीत गायो नहीं ,बल्कि जो गहरी चिंतन से ज्ञान तुम में उतर गया हैं ,
जो विस्दोम तुम्हारे समझ में उतर रही हैं, उसे ही बाटो रोज़मर्रा के जीवन में ,
तुम्हारे भीतर की गहरी समझ ही
तुम्हारे हर कार्य में छलके, प्रतिबिंबित हो
.हाथ दिये कर दान रे- हाथो से दान करो . अपने हाथो से कोई नकारात्मक कम मत करो .जिन हाथो को जोड़ कर तुम प्रभु का भजन करते हो ,
उन्ही हाथो से प्रेम का दान करो ...........

कहत कबीर सुनो भाई साधो,
कंचन निपजत खान रे ... मत कर - कबीर दास कहते हैं की सोना खदान से निकलता हैं .शरीर भी खदान हैं इस में से तुम हरि रुपी सोना को पा लो .
कंचन निपजत खान रे ... मत कर - कबीर दास कहते हैं की सोना खदान से निकलता हैं .शरीर भी खदान हैं इस में से तुम हरि रुपी सोना को पा लो .
इस शरीर में तुम उस अंतर सूर्य के दर्शन कर लो
.रोम रोम तुम्हारा परमात्मा की रौशनी से जगमगा जाये
मत कर मोह तु, हरिभजन को मान रे.- मत करो मोह ,इस शरीर से इस स्वप्न रुपी दुनिया से मोह मत करो ,
शरीर जाने से पहले .............इस शरीर में परमब्रह्म के दर्शन कर लो
इस शरीर से दुनिया को जीते हुए ईश्वर का अनुभव ले लो .
अपनी इंद्रियों को सद्गुरु में ,परमात्मा में लीन कर दो
प्रिये बंधू अपने ह्रदय पर हाथ रख कभी एकांत में विचार करना की परमपिता के इन भेटो का उपयोग तुमने अपने जीवन में कैसे कर रहे हो ?
ma anita